भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह ऋतु मधुमास की / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूट आयी नई कोंपल
देख ऋतु मधुमास की

छा गई है
फूल, फल आनंद की खुशबू
गुनगुनाती धूप भी अब
कर रही जादू
कूकने है लगी कोयल
यह ऋतु मधुमास की

खेत में फिर
दलहनी की फसल लहराई
और झूमे पात-डाली
मस्त पुरवाई
हर तरफ हो रही हलचल
यह ऋतु मधुमास की

महक महुए की
करें मन को नशीला-सा
हो गया है
प्रेममय मौसम हठीला सा
प्रिय-मिलन को हृदय विह्वल
यह ऋतु मधुमास की