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गजल रो रही / हरेराम बाजपेयी 'आश'
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अल्लाह को प्यारा मोहम्मद हो गया हैं,
स्वरों का सहारा, रफी खो गया है।
लाखों दिलों को धड़कने जिसने दी थी।
उसकी धड़कने रुकीं क्या गज़ब हो गया हैं।
दुआओं के दीपक तूफानों में बुझ गए,
रोशनी थी जहाँ, अब धुआँ हो गया है।
गजल रो रही, गीत गुमसुम हैं बैठे,
रफी अब नहीं है, पर अमर हो गया है॥