भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिलों में उजाला नहीं रहा / आनन्द किशोर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 17 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनन्द किशोर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उल्फ़त का जब दिलों में उजाला नहीं रहा
अम्नो अमाँ चमन में ज़रा सा नहीं रहा
मंज़िल मिले या ख़ाक मुक़द्दर की बात है
नीयत पे रहनुमा की भरोसा नहीं रहा
वापस वो लौट आया है तन्हा न जाने क्यूँ
पूछा तो कह दिया कि इरादा नहीं रहा
टूटा वही है जो था मुक़द्दर का पासबाँ
अब आसमाँ में वो ही सितारा नहीं रहा
जब तक था उनका साथ सहर ही सहर रही
पर उनके बाद कुछ भी तो अच्छा नहीं रहा
कितना है प्यार उनसे कभी कह नहीं सके
अब फ़ासला है, कहने का मौका नहीं रहा
यूँ मुश्किलों का वक़्त गुज़ारा तो है मगर
लेकिन जो हमने चाहा था वैसा नहीं रहा
भूले हुए हैं लोग सभी , ये कमाल है
दुनिया में कोई शख़्स हमेशा नहीं रहा
'आनन्द' हमको नाज़ था जिसके वुजूद पर
सागर में जा मिला वो किनारा नहीं रहा