भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस तरह मुझको देखती हो क्या? / विष्णु सक्सेना

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 23 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस तरह मुझको देखती हो क्या?
मेरी आँखों की रौशनी हो क्या?

मैं वही एक जलता सूरज हूँ
तुम वही धूप गुनगुनी हो क्या?

फूल की खुशबुओं में लिपटी, तुम
खूबसूरत-सी शायरी हो क्या?

मैंने हर पल जिसे तलाशा है,
शायरी की वह डायरी हो क्या?

जिस्म से जान रूठ कर पूछे,
तुम भी मेरी तरह दुखी हो क्या?

जब भी देखा है हंसते देखा है,
तुम भी बच्चों-सी रूठती हो क्या?

ज़िद तुम्हारी मुझे हंसाती है
मेरी बेटी-सी लाड़ली हो क्या?