भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरणार्थी / पूनम मनु
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:16, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम मनु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सोलह बरस बिताए मैंने
पिता के घर में
सभी की रजामंदी से
शरणार्थी थी वहाँ मैं
अब पति की शरण में
पिछले कई बरसों से
उनकी रजामंदी से
आगे किसकी... पता नहीं
एक कसक के साथ
मैं पूछती हूँ तुमसे आज
ओ दुनिया के पीर-फकीरो
नीति-नियंताओ, स्त्री भाग के
ज्ञानी-ध्यानी, साधू-संतो
नहीं रह सकती मैं सदा मुहाजिर
दो! पता अब मेरे घर का,
माँ के गर्भ के बाद कहाँ है...?
मेरा अपना ठौर-ठिकाना।