सोलह बरस बिताए मैंने 
पिता के घर में 
सभी की रजामंदी से 
शरणार्थी थी वहाँ मैं 
अब पति की शरण में 
पिछले कई बरसों से 
उनकी रजामंदी से 
आगे किसकी... पता नहीं 
एक कसक के साथ 
मैं पूछती हूँ तुमसे आज 
ओ दुनिया के पीर-फकीरो
नीति-नियंताओ, स्त्री भाग के 
ज्ञानी-ध्यानी, साधू-संतो 
नहीं रह सकती मैं सदा मुहाजिर 
दो! पता अब मेरे घर का, 
माँ के गर्भ के बाद कहाँ है...? 
मेरा अपना ठौर-ठिकाना।