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शक्ल दरिया की बदल दी / रामश्याम 'हसीन'
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शक्ल दरिया की बदल दी जाएगी
ज़िन्दगी ख़ुशियों के नग़्मे गाएगी
एक पौधा तो लगा हम भी चले
नस्ले-नौ फल-छाँव इससे पाएगी
रोकना चाहो तो ये रुकती नहीं
वक़्त की गाड़ी निकलती जाएगी
बन्द है मुट्ठी तो है ये ज़िन्दगी
रेत-सी वर्ना फिसलती जाएगी
एक को मुश्किल से पाला है 'हसीन'
दूसरी बेटी भी क्या पल पाएगी