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दुनिया को जब खटके हम / रामश्याम 'हसीन'
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दुनिया को जब खटके हम
कितना दर-दर भटके हम
उसने नज़रें क्या फेरीं
इक शीशे-से चटके हम
ग़फ़लत के फंदे में फँस
ज्यों फाँसी पर लटके हम
दुनिया की हर मुश्किल से
टकराते हैं डटके हम
धीरे-धीरे जानोगे
हैं दुनिया से हटके हम