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मरीचिका / राखी सिंह
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मेरे ओंठ;
रेत से सूखे ओंठ
मीठे जल से भरे ओक बने
तुम्हारे लिए
तुम्हारी दो आंखों में मुझे
मीलों फैला मरुस्थल दिखता है
तुम मेरी आँखें देखो
मेरी आँखों में तुम खुद को देखो
तुम इस झील में स्वयं को डूबता देखो।