भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैने स्वयं को / राखी सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 4 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राखी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांत्वना दिया
अच्छा था
हमारे बीच 'कुछ नहीं था'

कुछ न होकर
सबकुछ होने का योग साधा है मैने

कुछ न होने के नष्ट होने की पीड़ा
सबकुछ नष्ट होने की पीड़ा से
तनिक भी कम नहीं हुई।