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स्पर्श / राखी सिंह

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छुआ ऐसे तुमने
जैसे भौरे ने
छुआ हो गुलाब को
जैसे छुए नाव का तल
नदी के हिलकोरे भरते वक्ष को
किसी सुंदरी के गर्म तलवों तले
रौंदी जाए कार्तिक की ओदा दूर्वा

तुमने चाहा
न हो नुकसान किसी का
न छूटे चिह्न कोई

ये केवल मुझे पता है
स्पर्श छोड़ा है तुमने ऐसे
जैसे सांसो ने खींच रखी हो श्वास
और मना किया हो छोड़ने से।