भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे मेरे दरम्यां जो राज़ है / कुसुम ख़ुशबू
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:31, 6 मार्च 2020 का अवतरण
तेरे मेरे दरम्यां जो राज़ है
वो हमारे प्यार का आग़ाज़ है
हम वफ़ा का इम्तिहां लेते नहीं
ये हमारा मुनफ़रिद अंदाज़ है
वुसअतें अपनी बढ़ा ले ऐ फ़लक
ये हमारी आख़िरी परवाज़ है
ज़ख़्म तूने वो दिए कि क्या कहें
ऐ महब्बत! फिर भी तुझ पर नाज़ है
हर नफ़स रहता है तेरा इंतज़ार
ख़ुदकुशी का ये अजब अंदाज़ है
तुम गए तासीर लफ़्ज़ों से गई
हां ! उसी दिन से ग़ज़ल नासाज़ है
है शनासाई भी तुझसे ज़िंदगी
फिर भी तू इक कशमकश है राज़ है