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कोहरे से झांकता हुआ आया / लक्ष्मीकान्त मुकुल
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कोहरे से झांकता हुआ आया
मांगी थी रोशनी ये क्या आया
सूर्य रथ पर सवार था कोई
उसके आते ही जलजला आया
घोंसले पंछियों के फिर उजड़े
फिर कहीं से बहेलिया आया
दूर अब भी बहार आँखों से
दरमियाँ बस ये फ़ासला आया
काकी की रेत में भूली बटुली
मेघ गरजा तो जल बहा आया
जो गया था उधर उम्मीदों से
उसका चेहरा बुझा बुझा आया
बागों में शोख तितलियां भी थीं
पर नहीं फूल का पता आया