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ख़्वाब - 2 / अंशु हर्ष
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ख़्वाबों में जब
आसमान में चहल कदमी करती हूँ
ये तारे चुभते है पग की हथेलियों में
बैठ कर बुहारती हूँ तो
हाथ की रेखाओं में चमक बैठ जाती है
चाँद से कहती हूँ
यूँ मत टूट के बिखरा करों
सुबह होते ही ये दुनियां
मेरे रात के सफर को
पहचान जाती है