भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भुगतान / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:35, 23 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह दरकी हुई ज़मीन में
बोता है बीज
संभावनाओं के, अरमानों के

वह रोज़ मर जाता है
खुद नहीं मरता तो
वक्त के हाथों
मार दिया जाता है

फिर कानून
अपनी भूमिका निभाता है
उसके मृत शरीर की
होती है चीर फाड़

जानना चाहता है कानून
कैसे मरा वह?
यह नहीं कि क्यों मरा?

कानून को नहीं दिखाई देती
कर्ज के बोझ से लदी
उसकी छटपटाहट
आहत उम्मीदें

नहीं दिखाई देती
खाली खलिहानों में पसरी भूख
और एक ग़लत
वोट का भुगतान