भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर चोट है हौसला / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 23 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे कहाँ देखना
चाहते हो तुम?
तुम्हारी दी हुई चोट ने
मुझे खानाबदोश बना दिया

नाप लिए मैंने
जलियांवाला बाग से
विकास का दावा करते
तमाम रास्ते

अब नहीं चल पाऊंगी
खून, आतंक, छल भरे
रास्तों पर

अब मेरे हौसले ने
उड़ान तय कर ली है
अब तुम देखना मुझे
चाँद की वादियों में

अपने तरकश में
कसमसाते तीर लिए
बेध पाओगे क्या मुझे?

मेरे पते ठिकाने से तो अब
आँधियाँ भी डर रहीँ