भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सईंया घरवा के छोड़ बहरवा / सुभाष चंद "रसिया"

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 27 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष चंद "रसिया" |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सैया घरवा के छोड़ बहरवा रहे।
कैसे जिनगी बिताई तन्हाई में॥

वन में बोले कोयलिया जिया जरे।
तन में लागेला आग पुरुवाई में॥

बीते दिनवा ना रतिया सुरतिया भूले।
रहिया देखिला हम बाबा अंगनाई में॥

सैया जन्मी सनेहिया भुला गइल।
निक लागे ना हमके अमराई में॥

पपीहा निहारे सेवती के पानी।
बरसे ना बदरा सखी पुरुवाई में॥