भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेलें खेल / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 4 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= हँस-हँस गाने गाएँ हम ! / महेन्द...)
.
छुक-छुक करती आयी रेल
आओ, हिल-मिल खेलें खेल !
.
आँख-मिचैनी, खो-खो और
दौड़ा-भागी सब-सब ठौर !
.
टिन्नू मिन्नू पिन्नू साथ
हँस-हँस और मिला कर हाथ !
.
कूदें - फादें घर दीवार
चाहें जीतें, चाहें हार !
.
कसरत करना हमको रोज़
ताक़तवर हो अपनी फ़ौज !
.
सब कुछ करने को तैयार;
नहीं कभी भी हों बीमार !
.
आपस में हम रक्खें मेल !
.
छुक-छुक करती आयी रेल
आओ, हिल-मिल खेलें खेल !