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भोर है पात हिलने लगे / रंजना वर्मा
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भोर है पात हिलने लगे।
जाग पंछी चहकने लगे॥
रात घायल हुई रो पड़ी
ओस के अश्रु बहने लगे॥
थरथराने लगी पंखुरी
दिल भ्रमर के मचलने लगे॥
मौन है पंछियों के शिविर
घोसलों में दुबकने लगे है॥
है कुहासा घना हो गया
दृश्य धुंधले से दिखने लगे॥
चांद के हैं उनींदे नयन
अब सितारे चमकने लगे॥
लो हिमालय के पाषाण भी
बन के गंगा पिघलने लगे॥