भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छलछलाती इक नदी-सी जिंदगी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:23, 4 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=आस क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छलछलाती इक नदी-सी ज़िन्दगी।
कट रही पल-पल सदी-सी ज़िन्दगी॥

हैं बड़े सपने बड़ी अच्छाइयाँ
और इनमें बस बदी-सी ज़िन्दगी॥

एक पग भर विश्व का सर्जन जहाँ
है गमों की शतपदी-सी ज़िन्दगी॥

मिले सौ-सौ वर्ष या फिर एक क्षण
हर खुदी में बेखुदी-सी ज़िन्दगी॥