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केदारनाथ सिंह का जाना / जगदीश नलिन

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पुण्य तिथि पर पुनः स्मरण

ज़िन्दगी में अलामतें ही हों भरीं याकि मौजूद हों
सुख की नियामतें सभी
छोड़कर दुनिया हमें जाना ही है एक दिन
कोई गुरेज इस सच्चाई से नहीं...
तोड़ सारे नाते-रिश्ते, चल दिए तुम बान्ध बिस्तर

ठीक कहते थे
किसी का जाना बड़ा ख़तरनाक होता है
हम तो तनहा रह गए

और न जाने तुम कहाँ खो गए
हम यहाँ रोते रहे
किस तरह पत्थर सरीखा कर कलेजा
हमें इस बदशक़्ल दुनिया में अकेला
छोड़कर धोखा दे गुज़र गए

तुम तो थे, बस, नाम के केदारनाथ, साथ ही थे सिंह भी
एक कद्दावर कवि, बुलन्दी की मिसाल
घर तो अब लुट गया
तुम गए सब छूट गया
अलविदा...अलविदा...अलविदा...
केदारनाथ सिंह अलविदा...!

21 मार्च 2020