भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भ्रम / ओम व्यास

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 10 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम व्यास |अनुवादक= |संग्रह=सुनो नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम
जब नहीं हो,
आसपास मेरे कहीं भी
भ्रम का एक टुकड़ा
चीरकर वर्तमान को मन में गहरे तक उतर जाता है
और
पूछता है प्रश्न वर्तमान से कि
वह सब जो भूत हो गया है
भविष्य में अंकुरित होगा?
अनुत्तरित 'मैं' मन ही मन
तौल रहा हूँ, भू वर्तमान भविष्य
से जुड़े भ्रम के उस टुकड़े कि ताकत
जो
तीनों को पल भर में
पीला देता है पानी
एक ही घाट पर
और
रोप जाता है
मेरी बंजर जमीन पर
कल्पनाओं के पौधे
जबकि यह
बिलकुल सच है कि
पावस कि तरह
तुम
अब नहीं हो पास मेरे
कहीं भी!