भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धन हो गया मन खो गया / ओम व्यास

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 10 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम व्यास |अनुवादक= |संग्रह=सुनो नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तब
मेरे पास नहीं था 'धन'
पर बचा रखा था मैंने अपना मन'
और 'मन' में भी तुम्हारी ढेर सारी बातें / आदतें
तुम्हारी चुबुलाहट / खिलखिलाहट
शरमाना / दाँतों के बीच अंगुली दबाना
रूठना / मनाना
इंतजार करवाना / जल्दी जाना
अंगुली में दुपट्टा लपेटना
पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेदना
घर कि छत पर तारों वाली रात
तुमसे दूर होकर भी
मैं तुम्हारे सबसे करीब होता था,
तब मैं 'मन' से अमीर 'धन' से गरीब होता था।
अब मैंने बचा रखा है कुछ धन'
खोकर अपना 'मन'
मन में कुछ भी नहीं है शेष
कुछ धुंधली स्मृतियाँ
यादों की खुशबू
और दूर तक पसरा ' सन्नाटा।