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जेठ का महीना / वेणु गोपाल

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हासिल करनी है मुझे

अपनी ही चमड़ी
और खोई हुई
ताम्बई सच्चाई।


आज तक

कंधों पर

कितने-कितने

अजनबी मौसमों को

लादे


लिखता रहा हूँ मैं

हर अंधेरे पर

सूरज को निमंत्रण-पत्र तब


जाकर कहीं आया है

अब

यह जेठ का महीना। बहुत-बहुत

गर्मजोशी से

मिलने। मेरे

बेपर्द जिस्म को देने

मेरी ही चमड़ी


और

उस पर लिखने

खोई हुई ताम्बई सच्चाई।


(रचनाकाल : 22.11.1975)