भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कागज की नाव / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 11 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चल कागज की नाव
तुझे तो जाना है उस पार।
हइया हो, हइया हो
लहरें तुमको उठा रहीं हैं
हर पल आगे बढ़ा रही हैं
बढ़ती चल तू नाव हमारी
मत रहना मंझधार। हइया हो
लहरों को कर पार तभी तो
पहुँचेगी उस पार॥ हइया हो