भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन आया है मनभावन / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:47, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेल बढ़ाओ
नाचो गाओ
फागुन आया है मन भावन।
डाली-डाली फूल खिले हैं
गंध बाँटता है बागीचा,
एक दूसरे गले मिल रहे
आज न कोई ऊँचा-नीचा,
भेद मिटाओ
गले लगाओ
भर लो बाँहों में अपनापन।
प्यार भरा मनमोहक मौसम
हर देहरी का दुख हर लेता,
अपने रंगों से हर मन के
खालीपन को यह भर देता,
 हँसो-हँसाओ
 मौज मनाओ
आया है दिन कितना पावन।
गली-गली में, गाल-गाल पर
इंद्रधनुष देखो उग आया,
हर दरवाजे खुशियाँ छायीं
हर उदास मुखड़ा मुसकाया,
प्रेम बढ़ाओ
हाथ मिलाओ
जुड़ जाये आंगन से आंगन।