भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता नन्दन / भारत यायावर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:09, 1 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कविता नन्दन
के अभिनन्दन
में हो ऐसा क्रन्दन !
फटे ढोल पर
थिरक-थिरक कर
नाचे जब गोबरधन !
अपनी गावै,
मौज उड़ावै,
रहै सदा बन ठनठन !
दूरदर्शी है दूरदास,
कुछ बात करै दूरदर्शन !
विकटनितम्बा
कवयित्रियों के
दूरस्थ करै करमर्दन !
कविता नन्दन
बहुभंजन
रमा करो हे गंजन !
भारत यायावर से मत छिटको,
साथ चलो जी बन-ठन !