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एक नास्तिक के प्रार्थना गीत-8 / कुमार विकल
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जीवन भर की व्यथा—कथा को
कविता में कहना चाहा था
एक सुलगते वन का मैने
महाकाव्य लिखना चाहा था
लेकिन प्रभु जी, महाकाव्य से
जीवन जंगल बहुत बड़ा था
और हमारा जीवन जल भी
धीरे—धीरे सूख चला था
प्रभु जी , आओ मिलकर ऐसी
कोई नदिया ढूँढ निकालें
जिसके जल से एक सुलगता—
जंगल चंदन—वन बन जाए
कविता से भी बड़ी नदी का
जल मैंने पीना चाहा था
महाकाव्य से बड़ी को
शब्दों में रचना चाहा था