भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम क्यों आए जंगल में ? / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:33, 8 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत भीड़ ये जब से आई जंगल में ।
जमकर सबने धूल उड़ाई जंगल में ।
हुआ रात भर धूम-धड़ाका होटल में
नाचे-गाए छुटे पटाखे होटल में ।
शोर बहुत था पेड़-पहाड़ी काँप उठे
बाघ घड़ीभर सो न पाए जंगल में ।
झीलों में भी कूड़ा-कचरा भर डाला
बोलो कैसे प्यास बुझाएँ जंगल में।
छुपें कहाँ हम पेड़ घने सब काट दिए
झाड़ी तक भी नजर न आए जंगल में
भूखा-प्यासा बाघ सभी से पूछ रहा-
'मेरा घर था -तुम क्यों आए जंगल में?’