भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथी दादा धम्मक-धम्मक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:37, 8 मई 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हँसी -ठिठौली बच्चों की सुन ,
खिले हज़ारों फूल ।
हाथी दादा धम्मक-धम्मक ,
जा पहुँचे स्कूल ।

पकी जामुने, जमकर खाईं
खूब दिखाई शान ।
खा-पीकर फिर मच्चक-मच्चक ,
पहुँच गए मैदान ।

सवेरे से मैच क्रिकेट का
था वहाँ पर जारी ।
बैट पकड़कर मारे छक्के
जीत गए थे पारी ।

ड्राइंग रूम में दादा जी ,
फिर अचानक आए ।
दीवार पर अपनी सूँड से ,
कई चित्र बनाए ।

लाइब्रेरी में जाकर फिर
पुस्तक एक उठाई ।
सूप जैसे कान हिलाकर
कविता एक सुनाई ।