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टूटे हुए खिलौने / शंकरानंद

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बच्चे खेल रहे थे उन खिलौनों से
जो न जाने कब से टूटे हुए थे
उनका हर टुकड़ा अलग हो चुका था
फिर भी वे उन्हें समेटते
उनकी पेंच कसते
और उन्हें नया कर देते थे हर बार

उन खिलौनों के लिए यह नई बात नहीं थी
नई बात उन बच्चों के लिए थी
जो जान चुके थे कि
चीज़ों को इस तरह भी बचाया जा सकता है ।