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धूप मन को भा गई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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जब से सर्दी आ गई
धूप मन को भा गई ।
पेड़ सारे काँपते हैं
पात से तन ढाँपते हैं
धुंध नभ में छा गई ।
थरथराता ताल का जल
सिहरता है चाँद चंचल
रैन चिड़िया गा गई ।
अलाव बातों में लगे हैं
रात भर सारे जगे हैं
सुबह फिर शरमा गई ।