भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझसे मेरा नाम न पूछो / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 13 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपीकृष्ण 'गोपेश' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझसे मेरा नाम न पूछो ।

तुमको अगणित चिन्ताएँ हैं
तुम दुनिया के चिन्तित मानव
सह न सकोगे दुर्बल जर्जर
मेरी अन्तर्ध्वनियों का रव
अपना उजड़ा-सा घर देखो
मेरा उजड़ा गाम न पूछो ।

तुमको अपनी सौ साधें हैं
तुमको अपने सौ धन्धे हैं
मेरी साधें शव हैं जिनको
दूभर मिलने दो कन्धे हैं
मत पूछो मैं क्यों आया हूँ
काम बढ़ेगा ,काम न पूछो ।

मैं राही हूँ जिसने चलना
शुरू किया है आन्धी से लड़ना
मैं राही हूँ जिसकी राहें
गुरु गिरि गह्वर ऊबड़- खाबड़
सुबह मौत के मुँह से निकला
आने वाली शाम न पूछो ।
मुझसे मेरा नाम न पूछो ।