भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे आंसू / गोपीकृष्ण 'गोपेश'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:41, 14 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपीकृष्ण 'गोपेश' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे आंसू तारे बन कर
चमक रहे हैं चमचम-चमचम !
मैंने तम की चादर ओढ़ी,
ढाँक लिया मुँह साध साधना,
’माँगो जो वर चाहे माँगो’,
आज कह रही लुटी कामना;
सम्वेदन में धैर्य भला क्या
जब सम्वेदन-क्रूर-दृष्टि सम !
मेरे आंसू तारे बन कर
चमक रहे हैं चमचम-चमचम !!
मेरी आहों ने तुषार बन
दुनिया के दृग बन्द कर दिए,
मेरी पलकें बन्द युगों को,
कैसे देखें और किसलिए,
मेरे दिल की गहराई पर
मुस्काया मेरे दुख का क्रम !
मेरे आंसू तारे बन कर
चमक रहे हैं चमचम-चमचम !
आज प्रथम मेरे अलसित दृग
तन्द्रा ने आकर चुमकारे,
सपनों की नौका पर चढ़कर
तर आए सरि मेरे प्यारे,
’मृतक’ जिओ जागो’, बोले वे
मैंने हंसकर तोड़ दिया दम !
मेरे आंसू तारे बन कर
चमक रहे हैं चमचम-चमचम !