भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम तो बोलो / शतदल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:50, 15 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शतदल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने कहा
दृगों से अपने
अधर मौन हैं
तुम तो बोलो ।

वैसे आँखों,
अधरों में
कोई भी अनुबन्ध नहीं है
मन लेकिन
कह सका न इनसे
मेरा कुछ सम्बन्ध नहीं है ।

ऐसे में
कोई यह बोला
मेरे बन्द
किवाड़ न खोलो ।