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चौरासी वयमा / बद्रीप्रसाद बढू
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चौरासी वयमा पवित्र धरती चोखो सफा सभ्य छ
देखी चन्द्र ह्जार मास महिमा यो देह नै दिव्य छ
माया स्नेह लुकी लुकी हृदयमा आवास नै भव्य छ
यस्तो एक निमेश मात्र नभई यो जीवनै पूज्य छ //१।।