भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चौरासी वयमा / बद्रीप्रसाद बढू

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:59, 18 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बद्रीप्रसाद बढू |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चौरासी वयमा पवित्र धरती चोखो सफा सभ्य छ
देखी चन्द्र ह्जार मास महिमा यो देह नै दिव्य छ
माया स्नेह लुकी लुकी हृदयमा आवास नै भव्य छ
यस्तो एक निमेश मात्र नभई यो जीवनै पूज्य छ //१।।