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अश्क भरे हैं इन आँखों में / नमन दत्त
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अश्क भरे हैं इन आँखों में, कैसे हम मुस्कायें।
हम लोग सताए हैं ग़म के, क्या गीत ख़ुशी के गायें।
क्या कहिये हम अहले ग़म की, ज़िंदगी कैसे कटती है,
दिन जो गुज़रा रो-रो के तो रात की ख़ैर मनाएँ।
रात घिर आई, राहें कहती हैं घर अपने वापस चल,
हम हैं अहले-गर्दे-सफ़र, हम क्या घर लौट के जायें।
मत बहलाओ दिल मेरा, मुझको नाशाद ही रहने दो,
चंद ख़ुशी के लम्हे अपना ग़म दूना कर जायें।
क्यूँ कर गया परेशाँ "साबिर" ज़िक्र बहारें आने का,
क्यूँ ख़ुशगवार मौसम में भी दीवाने घबराएँ।