भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अश्क भरे हैं इन आँखों में / नमन दत्त

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 24 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नमन दत्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अश्क भरे हैं इन आँखों में, कैसे हम मुस्कायें।
हम लोग सताए हैं ग़म के, क्या गीत ख़ुशी के गायें।

क्या कहिये हम अहले ग़म की, ज़िंदगी कैसे कटती है,
दिन जो गुज़रा रो-रो के तो रात की ख़ैर मनाएँ।

रात घिर आई, राहें कहती हैं घर अपने वापस चल,
हम हैं अहले-गर्दे-सफ़र, हम क्या घर लौट के जायें।

मत बहलाओ दिल मेरा, मुझको नाशाद ही रहने दो,
चंद ख़ुशी के लम्हे अपना ग़म दूना कर जायें।

क्यूँ कर गया परेशाँ "साबिर" ज़िक्र बहारें आने का,
क्यूँ ख़ुशगवार मौसम में भी दीवाने घबराएँ।