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वे जो शिखर पर बैठे हैं / बैर्तोल्त ब्रेष्त / मोहन थपलियाल

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वे जो शिखर पर बैठे हैं,
कहते हैं —
शान्ति और युद्ध के
सार-तत्व अलग-अलग हैं ।

लेकिन
उनकी शान्ति
और उनका युद्ध
हवा और तूफ़ान की तरह हैं ।

युद्ध उपजता है
उनकी शान्ति से
जैसे माँ की कोख से पुत्र
माँ की डरावनी शक़्ल की
याद दिलाता हुआ ।

उनका युद्ध
ख़त्म कर डालता है
वह सब
जो कुछ उनकी शान्ति ने
रख छोड़ा था ।

(1936-38)

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल