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मेरी नगरी में आकर तो / सुधा गुप्ता

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मेरी नगरी में आकर तो
कोमल भी पत्थर बन जाता ।
मैं किसका अपराध कहूँ यह
तुम्हें दोष क्यों दूँ मैं साथी
मेरी दुनिया में आकर तो
पावस का पहला बादल भी
प्रलय-मेघ बन विष बरसाता ।
आशा आती पर क्षण भर को
मुसका, वह विलीन हो जाती
इस नगरी की रीत यही है
सन्ध्या का आशामय तारा
धूमकेतु बनकर रह जाता ।
क्या तुम सुनना चाहोगे प्रिय
मेरी करुणा-भरी कहानी ?
कथा यहीं तक बस सीमित है
स्वाति-बूँद का जल आकर भी
कुलिश कठोर बना रह जाता ।