भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वप्न भंग / न्गुएन चाय / कुसुम जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:27, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=न्गुएन चाय |अनुवादक=कुसुम जैन |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
स्वर्णिम स्वप्न से जागने पर
नहीं रहता शेष
लगता है सब कुछ हो जैसे रिक्त
अच्छा होगा पहाड़ पर
बनाएँ एक कुटी
उसमें रहें,
पढ़ें प्राचीन ग्रंथ
और हों संतुष्ट
जंगल में खिलते
फूलों को सुनते हुए
अँग्रेज़ी से अनुवाद : कुसुम जैन