भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू बहुत ही खूबसूरत है / विनय सिद्धार्थ
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 16 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कभी थोड़ा हँसाती है,
कभी थोड़ा रुलाती है।
मैं समझूँ किस कदर तुझको,
समझ में भी न आती है।
मगर कुछ याद आता है कि,
रौशनी की ख़ातिर अँधेरे की भी ज़रूरत है।
बहुत ही करीब से देखा है तुझको,
तू बहुत ही खूबसूरत है।
कभी चंचल-सी लगती है,
कभी मासूम लगती है।
कभी लगती गुलाबी सी,
कभी महरून लगती है।
तुझे देखा हर रंगों में,
तेरी अद्भुत-सी सूरत है।
बहुत ही करीब से देखा है तुझको,
तू बहुत ही ख़ूब।
कहीं पर बेवफ़ा भी है,
कहीं पर बावफ़ा भी है।
कहीं तू ख़ुशनुमा लगती,
कहीं मुझसे ख़फ़ा भी है।