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और फुर्सत में धोया / कविता भट्ट

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और फुर्सत में धोया
गर्म पानी में डुबोकर
थपकी से कूट-कूट कर
सूती कपड़े की तरह
रगड़-रगड़कर
बड़े इत्मिनान से
और फुर्सत में धोया
रंगीन-चमकीले सपनों को
तूने ओ जिन्दगी!
रंग फीके पड़ गए
हैरानी यह है कि
इन्हें न सहेज सकने का
इल्जाम भी मेरे ही सिर आया।