भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिटी दूरी दिलों की अब / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 15 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मिटी दूरी दिलों की अब
न चिन्ता मंज़िलों की अब।
नहीं सुनना कहानी तुम
जहाँ के बुजदिलों की अब।
बसेगी फिर नयी दुनिया
जहाँ के काबिलों की अब।
कभी परवाह मत करना
सफ़र में साहिलों की अब।
उजड़ती जा रही दुनिया
जहाँ के जाहिलों की अब।
करो चर्चा नहीं यारों
कभी शिकवे-गिलों की अब।