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जैसा मेरा सपना था / कैलाश झा ‘किंकर’
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जैसा मेरा सपना था
वैसा ही वह लगता था।
शब्दकोश से नामुमकिन
खुरच-खुरच कर रखता था।
आज यहाँ कल और कहीं
जैसे-तैसे रहता था।
बड़े-बड़े मसले को भी
चुटकी से हल करता था।
पागल कहती थी दुनिया
राम नाम भी जपता था।
कोई कुछ भी कह दे तो
वह तो केवल हँसता था।