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खामोश ज़ुबां हमदम कैसे / कैलाश झा ‘किंकर’
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खामोश ज़ुबां हमदम कैसे
औरों से भला तुम कम कैसे।
रफ़तार पकड़ते जीवन के
कमजोर हुए संयम कैसे।
उस पार प्रिये तुम हो बैठे
पहुँचेंगे वहाँ तक हम कैसे।
दस्तूर निभाने का मन है
पर नृत्य करूँ छमछम कैसे।
खुशियों से ज़माना है बमबम
ग़मगीन करे बमबम कैसे।