भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमको वह बहला रहे हैं / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:24, 19 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमको वह बहला रहे हैं
फिर भी हम घबरा रहे हैं।
आपके बिन गाँव सूना
बोलिए कब आ रहे हैं।
आपके ही संग हैं हम
कब, कहाँ तन्हा रहे हैं।
है ख़ुशी बच्चे हमारे
चैन, सुख सब पा रहे हैं।
प्रेम के संवाद से सब
फूल खिलते जा रहे हैं।
बोलियों में हो मधुरता
कब से हम बतला रहे हैं।
भाइयों पर स्नेह रखकर
गीत माँ के गा रहे हैं।
दूर जो बच्चे हमारे
ज़ख़्म को सहला रहे हैं।