भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपने मुझको अभी जाना नहीं / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:27, 19 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपने मुझको अभी जाना नहीं
दर्द के रिश्तों को पहचाना नहीं॥

दिल के टुकड़ों के लिए शुभकामना
जिनको आता ज़ख़्म सहलाना नहीं।

सोचने को सोचता हूँ आज भी
ग़ैर को भी ग़ैर तो माना नहीं।

संगिनी, संतान, रिश्ते खुश रहें
इसलिए मुझको है सुस्ताना नहीं।

चैन दिल को, नींद आँखों को मिले
इससे अच्छा सुख का पैमाना नहीं।

सामने सच जि़न्दगी का आ गया
घर-गृहस्थी में है घबराना नहीं।