भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हलाहल और अमिय, मद एक / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 25 जुलाई 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हलाहल और अमिय, मद एक,
एक रस के ही तीनों नाम,
कहीं पर लगता है रतनार,
कहीं पर श्‍वेत, कहीं पर श्‍याम,

हमारे पीने में कुछ भेद
कि पड़ता झुक-झुक झुम,
किसी का घुटता तन-मन-प्राण,
अमर पद लेता कोई चूम।