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कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में / सुरेश चन्द्र शौक़
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कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में
कि मेरी धूम मची है तबाह —हालों में
किसी भी बात को सोचूँ तो किसी भी पहलू से
तिरा ख़्याल ही उभरे मिरे ख़्यालों में
तिरे सुलूक का चाहा था तजज़िया करना
तमाम उम्र मैं उलझा रहा सवालों में
तुम्हारे रूप की सजधज में कुछ कमी है अभी
दिल अपना टाँक न दूँ मैं तुम्हारे बालों में
तुझे तलाश—ए—सुकूँ है तो अपने दिल में ढूँढ
न मस्जिदों में मिलेगा न ये शिवालों में
हमें भी शौक़ मयस्सर रही है ये नेमत
रहे हैं हम भी किसी के हसीं ख़्यालों में.
तजज़िया करना=विश्लेषण करना;मयस्सर=उपलब्ध