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इसलिए राह संघर्ष की हमने चुनी / वशिष्ठ अनूप

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इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें
ज़िंदगी आँसुओं में नहाई न हो,
शाम सहमी न हो, रात हो ना डरी
भोर की आँख फिर डबडबाई न हो। इसलिए…

सूर्य पर बादलों का न पहरा रहे
रोशनी रोशनाई में डूबी न हो,
यूँ न ईमान फुटपाथ पर हो खड़ा
हर समय आत्मा सबकी ऊबी न हो;
आसमाँ में टँगी हों न खुशहालियाँ
कैद महलों में सबकी कमाई न हो। इसलिए…

कोई अपनी खुशी के लिए ग़ैर की
रोटियाँ छीन ले, हम नहीं चाहते,
छींटकर थोड़ा चारा कोई उम्र की
हर खुशी बीन ले, हम नहीं चाहते;
हो किसी के लिए मखमली बिस्तरा
और किसी के लिए इक चटाई न हो। इसलिए…

अब तमन्नाएँ फिर ना करें खुदकुशी
ख़्वाब पर ख़ौफ की चौकसी ना रहे,
श्रम के पाँवों में हों ना पड़ी बेड़ियां
शक्ति की पीठ अब ज़्यादती ना सहे,
दम न तोड़े कहीं भूख से बचपना
रोटियों के लिए फिर लड़ाई न हो। इसलिए…

जिस्म से अब न लपटें उठें आग की
फिर कहीं भी न कोई सुहागन जले,
न्याय पैसे के बदले न बिकता रहे
क़ातिलों का मनोबल न फूले–फले;
क़त्ल सपने न होते रहें इस तरह
अर्थियों में दुल्हन की विदाई न हो। इसलिए…